लखनऊ से कुछ दूर हैदरगढ़ में युवा कृषि वैज्ञानिक वहां के किसानों के साथ जैविक खेती में उत्पादन बढ़ाने की नयी इबादत रचने में जुटे हैं।बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में परिवर्तित करने में सक्रिय युवा आशीष कुमार सरोज, आकाश अग्रवाल और रूबी श्रीवास्तव जो वरिष्ठ वैज्ञानिक अवधेश श्रीवास्तव के दिशा निर्देश में कार्य कर रहे हैं और मौजूदा समय में किसानों, विशेषकर युवा किसानों के लिए उदाहरण बन गये हैं। इन युवाओं की सोच है की वह खेती मे यूरिया के बढ़ते प्रयोग के कारण खराब हो चुकी मिट्टी को पोषक तत्व तो दे ही साथ ही लोगों को केमिकल फ्री खाद्य सामग्री मिले और इनकी इसी सोच ने इन्हे शहर की तड़क भड़क से निकाल कर बाराबंकी के एक छोटे से ब्लॉक में काम करने की ठानी। प्रयोगशाला में मिट्टी और तकनीक की समझ रखने वाले आशीष कुमार सरोज एनआईटी कैलिकट से केमिकल में इंजीनियरिंग हैं तो, आकाश अग्रवाल बिरला इंसटीटयूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलोजी में एमबीए है। इनके प्रोजेक्ट मे इनके साथ महिला एम्पॉवरमेंट के लिए योग में पीएचडी रूबी श्रीवास्तव है। आकाश अग्रवाल जब मीडिया से बात कर रहे तो उन्होंने कहा की हम कब समझेंगे की कैंसर जैसी बीमारी तंबाकू या सिग्रेट नहीं बल्कि हम जो खा रहें हैं उसकी देन है | पारम्परिक भूसे में मशरूम उत्पादन करने के विपरित गोबर में मशरूम उत्पादन करने वाले आशीष कुमार सरोज का मानना है कि अच्छी फसल के लिए पोषण युक्त मिट्टी की आवश्यकता होती है।
मीरपुर सिद्धौर ब्लॉक हैदरगढ़ में दो साल मिट्टी की जांच प्रयोगशाला बनाकर इन्होंने यहां पास के खेतों की मिट्टी की जांच शुरू की। गोबर और अन्य वेस्ट पदार्थो के माध्यम से प्राकृतिक तौर पर खेतों में उर्वरता बढ़ाने वाले नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे रासायनिक तत्वों की आवश्यक मात्रा में भरपाई करवाकर जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।रूटरीज एसेन्शिएल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा अर्बन बगीचा और भूमि पोषक ब्रांड नाम से प्रारम्भ की गयी इस जैव जैविक खाद को तैयार करने में तीस से चालीस दिन लगते हैं।तीन-तीन इंच की परतों में क्रमशः गोबर, इन्टरफेस कल्चर का छिड़काव, सरसों की खली स्लरी, बायो चार, नीम खली स्लरी, कटी हुई जलकुंभी, कैस्टर केक स्लरी, सॉडस्ट , पोल्ट्री वेस्ट, कटी सब्जियों का वेस्ट, प्रेस मड, मल्टीमिक्स माइक्रोबियल डीकंपोजर कल्चर की परतों को सात बार दोहराया जाता है। साथ ही लगातार आठ दिन तक तापमान नापा जाता है, जो 100 से 120 डिग्री तक होता है। जब तापमान कम होने लगता है, उसके बाद आक्सीजन बढ़ाने के लिए पलटा जाता है। इस तरह से कई बार किया जाता है, जब तक वातावरण के सामान्य तापमान पर नहीं आ जाता। इसे पूर्ण रूप से मिलने के बाद जब पूरी तरह अनावश्यक गैस निकल जाती है तो खाद को अनेको तरल पदार्थों से पोषित किया जाता है जो कि प्राकृतिक तरीकों से बनाए जाते हैं फिर पैकिंग की जाती है।इस प्रकार से जैव जैविक खाद को बनाने के तरीके आशीष सऱोज, आकाश अग्रवाल मिलकर किसानों को सिखा रहे हैं। इस अवसर पर उपस्थित किसानों ने बातचीत में बताया कि उन्हें यह तरीका बहुत फायदेमंद लगा। किसानों का कहना था कि इस खाद को मिलाने के बाद और कोई खाद मिलाने की जरूरत नहीं हैं।
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